शुक्रवार, 26 जून 2009

सोये हुये मुसाफिर को

सोये हुए इस मुसाफिर को
मिठ्ठी निंदिया में सुलाती वो
छन छनाकर, एक पायल की झंकार
की तरह चलती है वो
भोर के मिठ्ठे स्वपन मे
इस मुसाफिर को सुलाती वो !
मिठ्ठे स्वपन में महबूब आते है
पता नहीं कितनी रंगरलिया मानते है
एक वो होते है और
एक मैं !
चन्द छनो में संसार का सुख पाते है !
क्या बता मे उनकी अदाएं
आदयो पर फ़िदा हु मैं
उनकी एक मुस्कराहट ही तो
बचपन के पल्नियो के
रुक रुक कर के चलते हए
खिलोनो की मिठ्ठी मिठ्ठी आवाज से
माँ के उस प्यार स्व भरी हुई
हिलोरे याद दिलाती वो !
ये वकत यहीं ठहर जाये
सूरज यही रुक जाये
ये धरा स्वर्ग बन जायेगी
फिर कितने आनद आयेगे !
सुबह की ये पवन धारा
सोये हुये मुसाफिर को
मिठ्ठी निंदिया मैं सुलाती वो !!

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यह कविता मेरे द्वारा लिखी गयी है .
दीपक कुमार वर्मा
पंचारिया कालोनी खाजूवाला
जिला - बीकानेर ( राजस्थान )
फोन नंबर 09928882791